भूमिका
नदी से विशेष लगाव होने से, हमेशा से नदी पर कविता लिखना चाहता रहा हूँ | हाल के कुछ दिनों से टुकड़ो में लिख कर इस कविता को पूरा कर पाया हूँ |
कविता में मुख्य विषय नदी की मुक्त प्रकृति और विकेन्द्रित जल संरचना रखा है | भाषा की पकड़ न होने से कविता सड़क छाप लग सकती उसके लिए क्षमा चाहूंगा 😛
बांधे न बंधे
नदी नदी सदी है तू, सीधी नहीं सही है तू
बहे चले अजर अमर, सूखे नहीं कभी मगर
उदगम पवित्र तीर्थ है, सागर तेरा ना अन्त है
मेघ के तू गर्भ से, बरस्ती है तू स्वर्ग से
अनंत मैल पाप को, हरे चले हर ताप को
मनुष्य है तुझको बांधता, अहं है अपना साधता
अंतरीक्ष तक ना बाँध दो, धमनी नसों को तान दो
बांधे बराज पम्प से, रोके ना रुके दंभ से
बुद्धि विनाशे काल में, खींचे प्रलय के जाल में
बहेगी जलमग्न कर, अहंकार सबका चूरकर
नदी का बहना धर्म है, उसे रोकना न कर्म है
श्रृंगवेरपुर पइन अहर, कुंडे बावली केरे कुहल
सुन्दर लघु यही सही, लाखा भोज व उदयमती
लक्ष्य हो हमारा सर्वथा, तेन त्यक्तेन भुञ्जिथः
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